November 04, 2009

बदलाव.....

एक  नन्ही  सी  बूँद
जो  उठी  थी  उर  से
अथाह  सागर के ,
का  स्वाद  चखा  था  मैंने 
तनिक  नमकीन  थी|
उड़  चली थी 
कुछ  सहमी  हुई  सी ,
कुछ  बहकी  हुई  सी ,
सूरज  के  प्यासे  अधरों   से
अपनी  नमी  छिपाती हुई ,
मलिन हुई  फिजाओं  से
अपनी  निवेदिता  बचाती हुई ,
तलाश  रही  थी 
अपना  खोया  अस्तित्व |
देखो  गगन  को  छूकर
उसके  गलियारों   में  रंग  भरकर
फिर  वापस  आई  है......
तृषित कंठों   को  तर  करने ,
बंजर  धरा  की गोद  भरने ,
हथेलियों  पर   मृदंग  करती ,
संग  पर  नए  छंद लिखती |
फिर  चखा  स्वाद  मैंने …….
और  आश्चर्य  हुआ  इस  नयी  अनुभूति  पर
की  बूँद  अब  मीठी हो  चुकी  थी |

बदलता  तो  है  मनुज  भी
शिखर को  छूकर
फिर  बदलाव  मनुज  में  ही क्यूँ
विपरीत  होता  है …………………

~सौम्या