धुंध का घूंघट उठाती
सांवली सी सहर
इठलाती ,मुस्कुराती,
और बादलों की ओट से झांकता
ठिठुरता,अलसाता सूरज.....|
अंगड़ाईयां लेते झील और पोखर
और उन पर मचलती किरणों संग
अठखेलियाँ करती
वादियों की परछाईयाँ .....|
फूलों से अलंकृत पीरोजी चोली
और गुलाबी हवाओं की रेशमी ओढ़नी में
सँवरती वसुंधरा.....
शर्माती,सिहरती .....
खुद में सिमटती जाती ....|
साँसों में जब घुलती
हरसिंगार की महक
तो मानो ज़िन्दगी को जीने की
एक और वजह मिल जाती |
पतझड़ के शुष्क पत्तों से
फिर उभरता संगीत
ठूंठे अमलतास पर
पुनः पाखियों के नव गीत |
सीतकारती बासंती बयार
जब मीठी सी गुनगुनी धुप में
उड़ा ले जाती संग धूलिकणों को
तो सहसा दीख पड़ती
झुरमुठों से झांकती वल्लरियाँ ,
पत्थरों के अंतराल में अंकुरित
कोपलों की लड़ियाँ |
और ओस की चंद बूंदों के संग
पंखुड़ियों के आँचल में सहेजी हुईं
अश्रुओं की तमाम सीपियाँ
कुछ गगन की,कुछ धरा की ,कुछ मेरी
जो बरबस ही छलक आयीं थीं
जीवन को फिर पनपता देख.............|
~Saumya
~Saumya