मेरे मिट्टी के खिलौनों से
उस पार की मिट्टी की भी
महक आती है
तो क्या तोड़ दोगे तुम
मेरे सारे खिलौने ?
मेरी पतंग
जब कभी उड़ कर
उस पार जायेगी
और क्षितिज के शिखर को
छूना चाहेगी
तो क्या फाड़ दोगे तुम
मेरे रंगीन सपनों को ?
या फिर काट दोगे-
मेरे ही हाथ?
कुछ बोलो......
क्या करोगे तुम?
उस पार से जब कभी पंछी
मेरी बगिया में
गीत गाने आयेंगे
तो क्या रोक दोगे तुम
उनकी उड़ान ?
या उजाड़ दोगे
मेरी ही बगिया?
जब कभी उस पार के
गुलाबों की खुशबू
मेरी साँसों में
घुल जाया करेगी
तो क्या थाम लोगे तुम
चंचल हवाओं को ?
या तोड़ दोगे
मेरी साँसों की
नाजुक सी डोर?
उस पार से चल कर
चंद ख्वाब
जब मेरी पलकों में पनाह लेने आयेंगे
तो क्या रोक दोगे तुम
उनका रास्ता?
या छीन लोगे मुझसे
मेरी ही आँखें?
कुछ बोलो......
क्या करोगे तुम?
कुछ तो बोलो .....
इस पार
उस पार
उस पार
इस पार
दीवारें खड़ी करने के लिए
और कितने घर उजाड़ोगे तुम?
कितनों की मांगों का सिन्दूर मिटाओगे ?
कितनों की आँखों का दीप बुझाओगे ?
सुर्ख लाल ईटों पर
और कितने खून चढाओगे तुम ?
बोलो....
कुछ तो बोलो ....
कुछ तो बोलो ....
इन दीवारों को लम्बी करने के लिए
और कितनी ईंट जुटाओगे तुम?
जो कम पड़ी, तो क्या दिलों को भी निकाल कर
दीवारों पर चुन्वाओगे तुम?
बोलो .....
'माँ' को टुकडो में बिखेर दिया तुमने
क्या अब आसमां को भी बंटवाओगे तुम?
कुछ बोलो......
कुछ तो बोलो?
प्रश्न शिथिल है
उत्तर भी
बस एक डर है -
कि ईंटों की गिनती इतनी जियादा ना हो जाए
कि वो अपने ही बोझ तले ढह जाएं
और मलबे में दबे
मुझे तुम दिखो
कराहते हुए .....
पछताते हुए......
सिर्फ तुम ........
~Saumya