December 20, 2010

आड़ी-तिरछी रेखाएं















मैं जब छोटी थी ना
तो अक्सर .......बड़े शौक से 
कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें
बनाती रहती थी 
घर की दीवारों पर
और माँ..... हमेशा की तरह...... डांट देती थी
"मत कर बेटा ,दीवारें..... खराब हो जाएँगी!!"
मैं अब....... समझदार हो गयी हूँ  |

पर ऐ खुदा
तू क्या..... अभी तक नादान है
जो आड़ी-तिरछी रेखाएं
गढ़ता रहता है
हम सब की...... हथेलिओं पर
कभी कटी कभी पूरी 
कभी आधी-अधूरी
क्या तेरी माँ........ डांटती नहीं तुझे
"मत कर बेटा,जिंदगियां .... ख़राब हो जाएँगी.....!!"


~Saumya