मेरी छत पे अंगड़ाई लेते सूरज
तुम्हारी खिड़की पर शर्माते चाँद
के दरमियाँ, चलो फ़ासले नापते हैं !
तुम्हारी मेज़ पर रखी मेरी तस्वीर
मेरी अलमारी में रखी तुम्हारी पुरानी कमीज़
के दरमियाँ, चलो फ़ासले नापते हैं !
तुमारी दांईं आँख के तिल ,मेरी पलकों के बीच
मेरी हिचकियाँ ,तुमारी करवटों के बीच
तुम्हारी कलाई घड़ी ,मेरी दीवार घड़ी की सूईयों के बीच
टिक-टिक, टिक-टिक करती तन्हाईयों के बीच
टिक-टिक, टिक-टिक करती तन्हाईयों के बीच
चलो फ़ासले नापते हैं !
मेरी जम्हाइयां , तुमारी झपकियों के बीच
मेरे काम, तुम्हारी थकान के बीच
मेरे सवाल ,तुम्हारी खामोशियों के बीच
तुम्हारे अश्क़, मेरे बयानों के बीच
चलो फ़ासले नापते हैं !
मेरे आँगन के पीपल , तुम्हारे बरामदे के मेपल के बीच
माप लेते हैं दूरियां , वो अल्हड़ समंदर
माप लेते हैं दूरियां , वो अल्हड़ समंदर
जो अलसाया पड़ा है, मेरे तुम्हारे दरमियाँ
उसकी गहरायी भी मालूम करते हैं
चुरा ले जाता है जो मेरे परफ़्यूम की खुशबू
उसकी गहरायी भी मालूम करते हैं
चुरा ले जाता है जो मेरे परफ़्यूम की खुशबू
ठीक तुम्हारी नाँक के नीचे से और आने नहीं देता
तुम्हारी पतंग मेरे खेमे में !
पता लगाते हैं अंतर तापमान का भी मेरे तुम्हारे शहर के बीच
और फ़िज़ाओं की नब्ज़ टटोलते हैं !
उफ़ !!!
कितना कुछ है नापने ,तौलने को
सुनो ! इस बेकार की गणित से
ज़मानें को ही उलझने देते हैं !
तुम्हारे ख्वाबों में मेरी मौजूदगी है
मेरी दुआओं में तुम्हारा ज़िक्र
वो जो पुल बन रहा है आसमां के उस पार
चलो , वहां तक एक दौड़ लगा कर आते हैं !
--सौम्या
तुम्हारी पतंग मेरे खेमे में !
पता लगाते हैं अंतर तापमान का भी मेरे तुम्हारे शहर के बीच
और फ़िज़ाओं की नब्ज़ टटोलते हैं !
उफ़ !!!
कितना कुछ है नापने ,तौलने को
सुनो ! इस बेकार की गणित से
ज़मानें को ही उलझने देते हैं !
तुम्हारे ख्वाबों में मेरी मौजूदगी है
मेरी दुआओं में तुम्हारा ज़िक्र
वो जो पुल बन रहा है आसमां के उस पार
चलो , वहां तक एक दौड़ लगा कर आते हैं !
--सौम्या