इस बार जब सावन चुपके से
मेरी खिड़की पर दस्तक देगा
तो अँधेरे कमरों से निकल
मैं बावली सी दौड़कर
पहुँच जाउंगी छत पर |
भीगने दूँगी कुम्हलाई रूह को
बाहर से भीतर तक
भीतर से बाहर तक |
पथराई आँखों को
नम होने दूंगी
पराये अश्कों से ही सही |
इन्द्रधनुष से कुछ रंग उधार लेकर,
रंग लूँगी
रंग लूँगी
बेरंग हुए सपनों को |
थकी हुई साँसों को
फिर ताज़ा कर लूँगी
धरती की सौंधी महक से |
बरखा की रिमझिम को धीमे से गुनगुनाउंगी,
हवाओं की ओढनी ले,हौले से झूम जाउंगी,
और फिर खुशदिल होकर
जब दोनों हाथों को आगे फैलाउंगी
तो चंद बूँदें
मेरी हथेलियों पर आकर ठहर जायेंगी
और हर बार की तरह इस बार भी
कुछ नया लिखेंगी
कुछ अलग ....
इस बारी ,शायद कुछ अच्छा ! :)
~Saumya
Thanks for this nice post. I love rain very much.Whenever there's rain, I just go outside in the rain to feel, to live, to enjoy the nice weather, to forget everything, and to say thanks to the nature for its wonderful gifts. Those, who don't like rain, Plz forgive me.
ReplyDeleteAb kaam ki Baat....Rain vaali Poem, keval padkar hi, Hame to .......................
Bhai maza aa gaya.........Mujhe Galtiyan nikaalni to aati nahi. Isliye jinko is kavita me galtiyan mile vo plz mujhe Muaf/ maff kar dena. Ek baar phir se is post ke liye DHANYABAAD.
koi na roko dil ki udaan ko.... :)
ReplyDeletewonderfully written.. this poem of yours will bring a smile to many faces, I am sure :)
I liked this stanza the best..
"पथराई आँखों को
नम होने दूंगी
पराये अश्कों से ही सही |"
अद्भुत कल्पनाशीलता का परिचय यहाँ मिलता हुआ....शानदार है जी..
ReplyDeleteकुंवर जी,
@ virendra singh ji: yes we all love rains...thank you so much for liking the poem...
ReplyDelete@Divesh: thank you so much for such a nice overview...all smiles :)
ReplyDelete@kunwarji :thanks a lot !..keep reading!
ReplyDeletewow!!
ReplyDeleteit was damn amazing..
love the hope in it
Awesome
ReplyDelete@commited to life and Phoenix
ReplyDeletethanks a lot!
Hello Saumya,
ReplyDelete"मेरी हथेलियों पर आकर ठहर जायेंगी
और हर बार की तरह इस बार भी
कुछ नया लिखेंगी
कुछ अलग ....
इस बारी ,शायद कुछ अच्छा ! :)"
Very nice composition. Close to nature and envelope of feelings :)
Regards,
Dimple
@Dimps: thanks you so much.
ReplyDeleteLikhengi.. bahut achhaa aur bhii achha likhengi woh boonden jo aa kar thahari hain tumahri hathaliyon par.. sirf subah ke kuchh rang mila lena, thodi sii dhoop bhii..ho sakey toh chandni bhii... arey tumane toh inspire kar diya.. well done Sumaya..very well written.. god bless your writings.. enjoyed reading your profile too.. well here's reciprocating.. will follow you..hereafter..
ReplyDeleteये तो बात सही नहीं है जी....बारिश से हमारी कुछ जंग जैसी है...कुछ लम्हे, कुछ यादें जुड़ें हैं, जो अब नहीं..और बारिश से भी ज्यादा ये शब्द "सावन" हम क्या कहें, :) कविता तो बहुत अच्छी है :)
ReplyDeleteबस कुछ याद आया,,
..
Waah...
ReplyDeleteVery good Saumya.
Its always a joy reading your posts. I feel more connencted to my roots, to the nature, and to God, whenever I read your posts. Keep it up.
nice one girl
ReplyDeletehttp://shabd-baavala.blogspot.com/
do visit if u have time ...
very nice composition
@Ramesh Sir : thank you so much sir...I'm very much obliged you liked it...thanks a tonne for 'following' too..
ReplyDelete@abhi ji :thank you for reading!
ReplyDelete@ambuj: thanks a lot..I'm glad you appreciate my poems so much...thanks again for encouraging!
ReplyDelete@ananya: thank you so much!
ReplyDeletenice poem... padh kar hi barish ka ehsaas ho gya..
ReplyDeletekeep it up... :)
devesh..
बरखा की रिमझिम को धीमे से गुनगुनाउंगी,
ReplyDeleteहवाओं की ओढनी ले,हौले से झूम जाउंगी,
और फिर खुशदिल होकर
जब दोनों हाथों को आगे फैलाउंगी
तो चंद बूँदें
मेरी हथेलियों पर आकर ठहर जायेंगी
और हर बार की तरह इस बार भी
कुछ नया लिखेंगी
कुछ अलग ....
इस बारी ,शायद कुछ अच्छा !
yaar, mei b ab to hath failauga, kuchh bunden pane k liye.sach me, kamaal kar diya. bahut hi achhi panktiya h.:)
@Devesh : thanks a lot!
ReplyDelete@Vivek : thank you so much....I could sense you liked it..:)
ReplyDeleteसौम्या ,
ReplyDeleteपहली बार इस ब्लॉग पर आना हुआ....और वो भी तुमने मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट दिया था...वहीँ से रास्ता मिला...पहले तो मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया...और अब शुक्रिया इस बात का कि बहुत सुन्दर रचनाएँ पढने को मिलीं....कुछ कविताएँ पढ़ीं मैंने तुम्हारी...जिसमें ज़िंदगी रास आने लगी है बहुत खूबसूरत लगी ...तुम्हारी कल्पना शीलता बहुत अच्छी लगी....
इस बार सावन दिल को छू गयी..
इन्द्रधनुष से कुछ रंग उधार लेकर,
रंग लूँगी
बेरंग हुए सपनों को
बहुत सुन्दर.....शुभकामनायें
achchi lagi.
ReplyDeletevery reallistic imagination...keep writing
ReplyDelete@sangeeta ji:thanks a lot ma'am!...God bless!
ReplyDelete@mridula ji:.thank you so much...God bless!
ReplyDelete@abhishek: thanks a lot for reading!
ReplyDeleteThe simplicity did it for me. Very cute. very very real. thought of "jhonka hawa ka" all through. dunno why!
ReplyDelete@mangoman: thanks ya!..."jhonka hawa ka" ..???
ReplyDelete