December 20, 2010

आड़ी-तिरछी रेखाएं















मैं जब छोटी थी ना
तो अक्सर .......बड़े शौक से 
कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें
बनाती रहती थी 
घर की दीवारों पर
और माँ..... हमेशा की तरह...... डांट देती थी
"मत कर बेटा ,दीवारें..... खराब हो जाएँगी!!"
मैं अब....... समझदार हो गयी हूँ  |

पर ऐ खुदा
तू क्या..... अभी तक नादान है
जो आड़ी-तिरछी रेखाएं
गढ़ता रहता है
हम सब की...... हथेलिओं पर
कभी कटी कभी पूरी 
कभी आधी-अधूरी
क्या तेरी माँ........ डांटती नहीं तुझे
"मत कर बेटा,जिंदगियां .... ख़राब हो जाएँगी.....!!"


~Saumya

October 12, 2010

टूटे ख़्वाब....


हर शाम छत पर
जब अश्कों की आँच में
टूटे ख़्वाबों को
जलाती है वो 
तो धधकने लगती है
ख्वाहिशों की लौ!

सिहरती हवाओं का इक हुजूम
उड़ा ले जाता है संग
चंद अंगारों को
और फेंक देता है
किसी आसमां के सीने पर!

बच्चे खुश होते हैं
उन 'तारों' को देखकर
मुसाफिरों को मंजिल मिल जाती है
स्याह 'रात' जगमगा उठती है
और लोग
उन दम तोड़ते सुलगते अरमानों से भी
मन्नते मांग लेते हैं !

किसी को किसी के अंधियारों से
क्या फर्क पड़ता है ..............!!

~Saumya

September 19, 2010

ए खुदा ,तू खैरियत से तो है?













तेरे  नाम  पर  इक  मस्जिद  गिरती  है
तेरे  नाम  पर  इक  मन्दिर  बनता  है
तेरे  नाम  पर  ऐ  ज़िन्दगी  के दाता  
मौत  का  बर्बर  खेल  चलता  है |

तू  रिश्ते  जोड़ता  है
लोग  दिल  तोड़  देते  हैं
तू  प्यार  सिखाता  है
लोग  नफरत  घोल  देते  हैं |

तू  निराकार  है
तेरे  अक्स  पर  झगडे  होते  हैं
तू  पालनहार  है
लोग  तुझे  ही  तोल  देते  हैं |

तेरे  नाम  पर  बाती  जलती  है
तेरे  नाम  पर  घाटी  सुलगती  है
तेरे  नाम  पर  बनी  रिवायतों  पर
अक्सर  ही  रूह  बिलखती  है |

दर्द  होता  होगा  तुम्हें ,देखकर  यह  सब
आँखें  नम  हो  जाती  होंगी  अक्सर  तुम्हारी
ए खुदा  ,तू  खैरियत  से  तो  है ?
तेरी सलामती की दुआ अब मैं किस्से मांगूँ?

~Saumya

August 02, 2010

हो सकता है...




















हो  सकता  है
जब  कभी  तुम  बेहद  उदास  हो
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे  पास
मेरे  कन्धों  पर , सर  रखकर  रोने  को |
हो सकता है 
जब  कभी  अकेले  में  तुम  सिसक  रही हो
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे  पास
तुम्हारे आंसूं  पोछने  को |
हो  सकता  है
अगर  कभी  तुम्हे  चोट  लगे
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे पास
तुम्हारे  ज़ख्म  पर  प्यार  से  फूंकने  को |
हो  सकता  है
जब  कभी  तुम  परेशान  हो
मैं  ना  रहूँ तुम्हारे पास
तुम्हे  गले  से  छपटाकर
’सब  ठीक  हो  जाएगा ’ कहने  को |
हो  सकता  है
जब  कभी  तुम  हार  कर  टूटने  लगो
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे  पास
तुम्हे  हौसला  देने  को |
हो  सकता  है
जब  कभी  अकेले  में  तुम  डर  जाओ
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे  पास
तुम्हारा  हाथ  पकड़ने  को|
हो सकता है.................

तो  कभी मायूस  मत  होना 
एहसास  कर  लेना
मेरे  होने  का
दोहरा  लेना
मेरी  कही  हुई  बीती  बातें
समझा  लेना  खुद  को
जैसे  मैं  समझाती  थी  तुम्हे
लड़ना  अपनी  कमजोरियों  से
और  फिर  छू लेना  आसमां  को
जीत  लेना  जहां  को!

मैं  तुम्हारे  ’पास ’ हर  वक़्त  ना  सही
तुम्हारे  ’साथ ’ हमेशा  हूँ !

~Saumya

July 19, 2010

तुम्ही तो हो!



















जैसे पंखुड़ियों के आँचल से लिपटी
कोई ओस की बूँद
जैसे दिल के तार छेड़ती
कोई मीठी सी धुन |
जैसे चेहरे पर खिली
मासूम सी हँसी
जैसे गोकुल के गलियारों में
कृष्णा की बंसी |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे बुझते दिए को बचाती
कोमल हथेलियाँ
जैसे  दूर किसी गाँव में
सरसों की फलियाँ |
जैसे गोधुली बेला में
वो पहला सितारा
जैसे झरनों में झिलमिलाती
कोई चमकती धारा |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे बिन मांगे पूरी हुई
कोई मनचाही मुराद
जैसे सब खोने के बाद भी
एक छोटी सी आस |
जैसे सुबह सुबह देखा
कोई सुन्दर सपना
जैसे परायों की भीड़ में
सिर्फ कोई अपना |
हाँ,तुम्ही तो हो!  

जैसे सांसों में घुलती 
हरसिंगार की महक
जैसे दिनों बाद आँगन में
पाखियों की चहक |
जैसे ठंडी ठंडी सी बयार 
और गुलाब के बगीचे 
जैसे नदियों का कल-कल
और सावन की झींसें |
हाँ,तुम्ही तो हो!  

जैसे छत पर बैठा 
परिंदों का जोड़ा 
जैसे घर की देहलीज़ पर 
तितलियों का डेरा |
जैसे आँखों से छलकते
ख़ुशी के आंसू 
जैसे मंद-मंद- मुस्कुराती 
बासंती ऋतू |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे चुनिन्दा शब्दों से गुथी 
कोई प्यारी-सी कविता 
जैसे रौशनी बिखेरती 
निश्छल सविता | 
जैसे खुदा का भेजा 
कोई अनमोल फरिश्ता 
खुशियाँ बाँटता जो 
आहिस्ता-आहिस्ता |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे हाथों पर लिखी
भाग्य की लकीर
जैसे दुआएं देता
कोई अनजाना फकीर |
जैसे कड़ी धूप के बाद 
सुहावनी सी शाम
जैसे ज़िन्दगी  का ही
कोई दूसरा नाम |
हाँ,तुम्ही तो हो!
सिर्फ तुम्ही तो हो! 




गोधुली बेला=when day and night meet just after the sunset,पाखियों=birds,सविता=sun

June 23, 2010

इस बार जब सावन...

 
















इस बार जब सावन चुपके से
मेरी खिड़की पर दस्तक देगा
तो  अँधेरे कमरों से निकल
मैं बावली सी दौड़कर
पहुँच जाउंगी छत पर |

भीगने दूँगी कुम्हलाई रूह को
बाहर से भीतर तक
भीतर से बाहर तक |

पथराई आँखों को
नम होने दूंगी
पराये अश्कों से ही सही |

इन्द्रधनुष से कुछ रंग उधार लेकर,
रंग लूँगी 
बेरंग हुए सपनों को |

थकी हुई साँसों को
फिर ताज़ा कर लूँगी
धरती की सौंधी  महक से |

बरखा की रिमझिम को धीमे से गुनगुनाउंगी,
हवाओं की ओढनी ले,हौले से झूम जाउंगी,
और फिर खुशदिल होकर
जब दोनों हाथों को आगे फैलाउंगी
तो चंद बूँदें
मेरी हथेलियों पर आकर ठहर जायेंगी
और हर बार की तरह इस बार भी
कुछ नया लिखेंगी
कुछ अलग  ....
इस बारी ,शायद कुछ अच्छा ! :)

~Saumya

June 07, 2010

ज़िन्दगी...




















'दिल' और 'दिमाग' में उलझनें बढ़ गयीं थीं,
साँसों की डोर में भी गिरहें पड़ गयीं थीं
आज बैठकर सुलझाया है सब कुछ
ऐ ज़िन्दगी तू हमें रास आने लगी है!

माथे पर कुछ सिलवटें बेहद फिजूल थीं,
पलकों की छाँव में सिर्फ यादों की धूल थी 
आज बैठकर मिटाया है सब कुछ
ऐ ज़िन्दगी तू हमें लुभाने लगी है!

हाथ की लकीरों पर वक़्त की खरोंचे थीं,
लबों पर मुसकुराहट भी ज़ख्म सरीखी थीं 
आज 'उम्मीद' का मरहम लगाया है सब पर
ऐ ज़िन्दगी तू हमें अपनाने लगी है!

ऐ ज़िन्दगी तू हमें रास आने लगी है!

~Saumya

गिरहें=knot,खरोंचे=scratches


June 05, 2010

I wish to hear a love story...



I wish to hear a love story. Real. Simple. Pure. A love story which did not just happened out of mere need or want or even passion but was delicately destined in the womb of the universe. A story which is more beautiful than God’s finest creations-rains, stars, butterflies, roses, and rainbows. A story which is its own exemplary, into this earth but just out of this world! A story which does not tell about love at first sight. Instead, portrays how it lasted till the last breath. A story where there is no separation or dying together but undying togetherness and a longing to live more (obviously until God’s own will). A real story which is dreamier than all the alluring dreams there could ever be. I wish to hear such a love story where two hearts are glued with utmost honesty and mutual respect. A story whose essence can never be captured by a camera or woven into words. A story where there’s no first, second or last but one, just one –a ‘one man woman’ and a ‘one woman man’ ideally made for each other. A story where love reflects care and care reflects love. A story where the relationship is above any earthly thought or material desires. A story where the pain of one trickles down through the eyes of other, the bliss of one shimmers on the lips of other. A story where life itself is a romantic song and living is dancing to the tunes of it. I wish to hear a love story where charm at 59 is more imposing than that at 21. A story where there is a silent promise of being always there and an implicit commitment for other’s well-being. A story where the two laugh together, play together, dance together, sing together, dream together, work together, eat together, pray together………live together ………in resonance. A story which talks of love between two very beautiful people(beautiful you know?) swinging in the sea of love adorned with islands of trust, innocence, wisdom, compassion, understanding and everything angelic you can think of. I wish to hear such a story where even knowing the two lovers can bring you close to your own love. A story which can rekindle your faith in humanity. A story which can wet your eyes and distil your heart. A story which can strike few chords of your inside violin. A story where two splendid souls make a perfect couple and you fall in love with the duo. A story which is not a matter of few minutes or hours or even years but starts from forever and lasts till eternity. A story which every guy or girl would wish to be his or hers. A story where the benevolence of two is not only limited to them but to everyone around. Yes, a story about two people in the best of intimacies.
         
                     In the current bad-new-times, I wish to hear such a love story……….I really wish……………!

April 12, 2010

To Sparrow, with Love

















I remember the times O Sparrow
When I was young and you were little
Days began with your rhythmic chirrups
And evenings spoke of my innocent twiddles.

Your nest was an oft visited place
During playtime in sunny weather
I was amazed at the way you sewed it all
Twigs and yarns and feathers.

My garden was more beckoning
When you sang there with your troop
Daffodils and Butterflies danced
And I fostered you with drupes.

I daily gazed at the eternal sky
And watched you fly high ,in blue extremes
Your vigor,your freedom and your abiding bustle
Intrigued me to live my Dreams.

I remember the times O Sparrow
When a storm struck us both
You coped up the next day ,I heard your song
It rejuvenated, my heart and hope.

You often came and sat by my verandah
And were ne’er afraid of me
You made my ambience cheerful
And I just loved your very being!

Ah! But O little birdie, where have you
disappeared now?Long time,no see!
I miss your soulful songs
and I JUST MISS THEE!



March 29, 2010

इस पार उस पार.....














मेरे मिट्टी के खिलौनों से 
उस पार की मिट्टी की भी
महक आती है
तो क्या तोड़ दोगे तुम
मेरे सारे खिलौने ?

मेरी  पतंग
जब  कभी  उड़ कर
उस पार जायेगी 
और क्षितिज के शिखर को
छूना चाहेगी
तो क्या फाड़  दोगे तुम
मेरे रंगीन सपनों  को  ? 
या फिर काट दोगे-
मेरे ही हाथ?

कुछ बोलो......
क्या करोगे तुम?

उस पार से जब  कभी पंछी
मेरी बगिया में
गीत गाने आयेंगे
तो क्या रोक दोगे तुम
उनकी उड़ान ?
या उजाड़ दोगे
मेरी ही बगिया?

जब कभी उस पार के
गुलाबों की खुशबू
मेरी साँसों में
घुल जाया करेगी 
तो क्या थाम लोगे तुम
चंचल हवाओं को ?
या तोड़ दोगे
मेरी साँसों की
नाजुक सी डोर?

उस पार से चल कर
चंद ख्वाब
जब मेरी पलकों में पनाह लेने आयेंगे
तो क्या रोक दोगे तुम
उनका रास्ता?
या छीन लोगे मुझसे
मेरी ही आँखें?

कुछ बोलो......
क्या करोगे तुम?
कुछ तो बोलो .....

इस पार
उस पार 
उस पार
इस पार
दीवारें खड़ी करने के लिए
और कितने घर उजाड़ोगे तुम?
कितनों की मांगों का सिन्दूर मिटाओगे ?
कितनों की आँखों का दीप  बुझाओगे ?
सुर्ख लाल ईटों पर
और कितने खून चढाओगे  तुम ?
बोलो....
कुछ तो बोलो ....

इन  दीवारों को लम्बी करने के लिए
और कितनी ईंट जुटाओगे  तुम?
जो कम पड़ी, तो क्या दिलों को भी  निकाल कर
दीवारों पर चुन्वाओगे तुम?
बोलो .....

'माँ' को टुकडो में बिखेर  दिया तुमने
क्या अब आसमां को भी बंटवाओगे तुम?

कुछ बोलो......
कुछ तो बोलो?

प्रश्न शिथिल है
उत्तर भी
बस एक डर है -
कि ईंटों की गिनती इतनी जियादा ना हो जाए
कि वो अपने ही बोझ  तले ढह  जाएं
और मलबे में दबे
मुझे तुम दिखो
कराहते  हुए .....
पछताते हुए......
सिर्फ तुम ........


~Saumya

January 11, 2010

सहर

















धुंध का घूंघट उठाती
सांवली सी सहर
इठलाती ,मुस्कुराती,
और बादलों की ओट से झांकता
ठिठुरता,अलसाता सूरज.....|
अंगड़ाईयां लेते झील और पोखर
और उन पर मचलती किरणों संग
अठखेलियाँ करती
वादियों की परछाईयाँ .....|
फूलों से अलंकृत पीरोजी चोली
और गुलाबी हवाओं की रेशमी ओढ़नी में   
सँवरती  वसुंधरा.....
शर्माती,सिहरती .....
खुद में सिमटती जाती ....|
साँसों में जब घुलती
हरसिंगार की महक
तो मानो ज़िन्दगी को जीने की
एक और वजह मिल जाती |
पतझड़ के शुष्क पत्तों से
फिर उभरता संगीत
ठूंठे अमलतास पर
पुनः पाखियों के नव गीत |
सीतकारती बासंती बयार
जब मीठी सी गुनगुनी धुप में
उड़ा ले जाती संग धूलिकणों  को
तो सहसा दीख पड़ती
झुरमुठों से झांकती वल्लरियाँ ,
पत्थरों के अंतराल में अंकुरित 
कोपलों की लड़ियाँ |
और ओस की चंद बूंदों के संग
पंखुड़ियों के आँचल में सहेजी हुईं 
अश्रुओं की तमाम सीपियाँ
कुछ गगन की,कुछ धरा की ,कुछ मेरी
जो बरबस ही छलक आयीं थीं
जीवन को फिर पनपता  देख.............|

~Saumya