October 28, 2012

My List

There are so many things we wanna do in life but could not always. The academic pressures,shortage of time,deadlines of other 'important stuffs',elders restrictions,social constrictions,circumstances,responsibilities and at times our own fear,laziness or even our mood ,prohibit us to do so.But fortunately or unfortunately we all have just one 'LIFE' to live on.

.......................... And so I'm very much keen to execute "My List" before I take my last breaths on this planet.

Here it goes............



  • Do my masters 
  • Get a good job
  • Travel as much as possible-both India and Abroad 
      
  • Learn Swimming 
  • Learn  Skating
  • Donate blood
  • Save someone's life
  • Donate my eyes
  • Get one of my works published
  • Write a novel
  • Learn Guitar and Synthesizer

  • Work and run a charity organization
  • Go for Mountaineering,preferably Everest  
  • Build a sandcastle
  • Learn to cook some good stuff ,esp cakes n cookies 
        
  • Learn German and Spanish
  • Travel in a Ship
  • Inspire someone to success
  • Make a difference in someone's life
  • Go for a week long trip with friends 
       
  • Fight for a genuine social cause
  • Own my own personal library 
  • Read as many good books as possible
    • Learn Dancing(salsa or belly dancing) 
    • Sing in public 
    • Have a pair of rabbits  
              
      • Own a latest camera
      • Do some good Photography
      • Paint on canvas
      • Own a Telescope 
               
        • Go on an African Safari
        • Practice Driving Car(which I learnt once)
        • Do river rafting 
               
        • Own a house of my dreams
        • Have my own garden with a big fountain 
        • Go to the top of Eiffel Tower 
                  
        • Ride on a hot air balloon
        • Watch a cricket/football match in stadium
        • Live in another country for atleast an year 
            
        • Go for a long long drive in an open-top car
        • Get married to guy of my dreams and have a happy family with him
        • Leave this world a bit better      

          PS: This is all I could think of now.The list is subjected to upgradation.
          PS:I was a little occupied these days.But now I'll blog on a regular basis and will very soon visit you guys.

          ~love and prayers

            August 31, 2012

            गुब्बारे-वाला


            अभी-अभी सड़क किनारे
            रंग-बिरंगे दो गुब्बारे फूटें हैं।

            मोटर गाड़ी में बैठा

            तकरीबन चार साल का बच्चा
            एक हाथ में लॉलीपॉप है जिसके
            नयी यूनिफ़ॉर्म में अपनी जो बौहत फब रहा है
            पहला गुब्बारा..... उसी का फूटा है।
            माँ ने लाडले की फ़रमाइश पर
            बड़े शौक से दिलाया रहा होगा
            स्कूल गेट से बाहर निकलते वक़्त।
             पेचीदगियां तमाम हैं आसपास
            कुछ न कुछ गलती से चुभ गया होगा।
            बच्चा सुबक-सुबक कर रो रहा है
            खेलने का सामान चाहिए उसको
            माँ पुचकारते हुए चुप करा कर कहती है
            अगले चौराहे पर दूसरा दिला देगी !

            एक गुब्बारे-वाला है

            उम्र उसकी लगभग छह बरस होगी
            बच्चा कहूँ उसे या नहीं इस कश्मकश में हूँ ......बहरहाल
            माथे पर तमाम सिलवटें हैं उसके
            नंगे पाँव .....फटे पुराने कपड़ों में
            रंगीन सपने बेचता है हर रोज़
            छोटे तीन रुपये के ....बड़े पांच रुपये के।
            दूसरा गुब्बारा उसी का फूटा है 
            सूइयाँ .......दिल में चुभी हैं
            और जो फूटा है ......वो दरअसल नसीब है
             रोया पर वो बिल्कुल नहीं है 
            जानता है शायद   
            आँखों के पानी से ना भूख की आग बुझेगी ना जीने की प्यास ।
            आवाज़ सुनते ही दूर अब्बा ने जोर से फटकार लगायी
            "कमबख्त! पूरे पाँच रुपये का नुक्सान कर दिया
            एक और गया तो खैर नहीं"।
            गुब्बारे-वाले ने हमउम्र बच्चों को
            आइस-क्रीम खाते देखा
            अपना दूसरा हाथ ख़ाली पेट पर रखा
            फिर कुछ सोचकर जल्दी-जल्दी आगे बढ़ गया
            "बाबु जी गुब्बारे ले लो ......दीदी जी गुब्बारे ले लो "

            अगले चौराहे पर खिलौने और मिल जायेंगे बेशक

            बावरा बचपन पर कहो कैसे मिलेगा?
            अगले चौराहे पर होटों की हँसी भी हासिल हो जाएगी यकीनन
             मुँह के निवाले के लिए पर ..... ना जाने कितने शहर अभी और पार करने पड़ेंगे।
            ..........................................................................................................................
            मोटर गाड़ी वाले बच्चे को जल्दी चुप कराओ कोई 
            गुब्बारे-वाले की दबी चीखें शायद सुनाई दे जाएँ थोड़ी !

            ~Saumya

            August 21, 2012

            खुदा से मिल्ली कर ली है...














            मैं ना अभी-अभी
            झगड़ कर आ रही हूँ..
            खुदा से !

            वैसे तो वो 
            कमाल का रंगसाज़ है 
            घर आता है मुझसे मिलने 
            तो अपने हाथ का बनाया
            कुछ न कुछ लेकर
            कभी एक कटोरी चाँदनी 
            कभी गाने वाली चिड़िया !
            और मैं उसके घर जाती हूँ 
            तो माँ के बनाये 
            ढेर सारे लड्डू लेकर 
            (बौहत पसंद हैं उसे ! ) 

            दोस्त है वो मेरा .........पक्का वाला
            अपनी बड़ी सारी बातें........बताती हूँ उसे
            मेरी फ़िक्र भी करता है...बौहत जियादा
            मैं भी कोशिशें करती हूँ
            उसकी खामोशियाँ पढने की....
            उसका ख्याल रखने की..........

            पता है   
            पतंग उड़ाने का सलीका
            वो ही मुझे सिखाता है
            और ये कल्पना के पर भी
            उसी ने लाकर दिए थे
            क्षितिज पार जो बाज़ार है ना.......वहीं से

            वो मेरे पेंसिल कलर अक्सर
            मुझसे मांग कर ले जाता है
            जब भी कोई नए फूल या तितलियाँ बनाने होते हैं....
            आसमां के कैनवास पर ये जो रोज़ नयी-नयी
            चित्रकारियाँ देखते हो ना
            सब उसी की करामात है...........

            वो मुझसे पहेलियाँ बुझाता है ...अजीब अजीब सी
            मैं (बेवक़ूफ़)..........बता ही नहीं पाती!
            बदले में मैं भी अपनी नज्में सुना सुनाकर
            खूब तंग करती हूँ उसे
            और जब हिसाब बराबर हो जाता है
            दोनों ठहाके लगाकर ज़ोर-ज़ोर से हँसते हैं.......देर तलक !

            हम दोनों साथ में बौहत सारे खेल खेलते हैं
            वो मेरी गेंद,गुब्बारों से, मैं उसके चाँद-तारों से
            कभी पकड़न-पकड़ाई, कभी छुपन-छुपाई ...........
            अरे मैं तो भूल ही गयी
            हाँ अभी-अभी उससे झगड़ के आ रही हूँ
            पता है क्यूँ?

            आज जब मैं ये
            'ज़िन्दगी वाला खेल' खेल रही थी ना
            उसने पिछली बार की तरह
            इस बार भी हेरा-फेरी की ...........
            और मेरी सारी गोटियाँ बिगाड़ दीं
            भला कोई दोस्त ऐसा करता है क्या? नहीं ना ?
            इसीलिए मैं -कट्टी कट्टी कट्टी बोलकर आ गयी !
            गोटियों से छेड़खानी
            मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती !

            देखना शाम को आएगा
            पूरी पल्टन के साथ
            हमेशा की तरह मुझे मनाने के लिए
            थैला भर बादल लेकर ...........
            पर मैं भी जिद्दी हूँ......
            इस बार नहीं मानूंगी....
            और अपने पेंसिल कलर भी वापस ले लूँगी .............
            हाँ नहीं तो !
            गुस्सा हूँ मैं उससे ........बौहत जियादा !
            (गन्दा !)

            पर
            माँ -पापा कहते हैं
            सिर्फ एक खेल की वजह से
            ऐसे नाराज़ नहीं होते
            वो भी..... अपने सब से अच्छे दोस्त से !
            उन्होंने पक्का वाला वादा किया है
            कि खुदा को समझायेंगे.......मुझे ज्यादा सताया ना करे !

            ठीक है......आने दो शाम को
            पर आसानी से ना मानूंगी
            पहले नखरे दिखाउंगी....थोड़ा चिढ़ाऊँगी
            भैं -भैं कर रोऊँगी भी...... उसी के सामने
            और फिर क्षितिज पार बाज़ार से अगर
            'धरती वाला इत्र' लाकर देगा मुझे
            तभी बात करुँगी .........
            पर कहे दूंगी
            की अगली बार से ऐसा किया
            तो मैं कभी ना खेलूंगी 
            ये........... 'ज़िन्दगी वाला खेल' .............!
            ...................................................................
            ...................................................................
            आज हम दोनों ने बारिश में
            खूब मटरगश्तियाँ कीं
            झूलों में झूला, बूंदों से खेला
            मैंने भुट्टा खाया , उसने बर्फ का गोला
            मैंने उस पर फूल डाले, उसने मेरे बाल बिगाड़े
            और फिर जाते जाते
            मैंने उसके लिए कागज़ की कश्तियाँ बनायीं
            और उसने....हमेशा की तरह कैनवास पर खींच दीं
            सातों की सातों रंगों की खड़ियाँ !
            ........................................................................
            हाँ जी
            मैंने खुदा से मिल्ली कर ली है
            और अपने पेंसिल कलर भी वापस नहीं लिए हैं ! :-)

            ~Saumya

            August 18, 2012

            चाँद के दो टुकड़ों जैसे !



            हम दोनों
            चाँद के दो टुकड़ों जैसे !

            तुम

            नूर से लबरेज़
            केसरिया कुर्ते में
            बिगड़े बदमाश से दिखते
            (पता है...........पर हो नहीं!! )
            रोम-रोम रूमानी.....शरारतें करते
            हुस्न पर अपने.... इतराते फिरते
            लड़कियां सारी फ़िदा हैं जिस पर !

            और मैं

            सबकी नज़रों से परे
            थोड़ी साँवली सी
            जियादा बावली सी
            हमेशा मुस्कुराती रहती
            (गालों पर गुल* नज़र आते हैं क्या?)
            तिश्नगी में.....रोश्नी की....या शायद तुम्हारी
            पर जान लो...तुमसे ....कुछ कम नहीं !

            सोचो तो .......क्या मंज़र होगा !

            जब 'एक' होंगे.... हम दोनों
            पूरी मैं...............पूरे तुम !

            झीना-झीना जब

            वक़्त का परदा उठेगा
            कहीं तीज सजेगी
            कहीं ईद मनेगी
            आँखों से आतिशबाजियां होंगी
            ख़ुशी में हमारी !

            सोचो तो .......

            हम दोनों... इक साथ... सबको
            इतने कमाल लगेंगे
            कि कोई देख-देख मुस्काएगा
            कोई दुआओं में बसाएगा
            कोई तस्वीरों में उतारेगा
            कोई घर बुलाएगा ..........
            तोहफ़े में हमें
            बेशुमार तारे मिलेंगे
            हम दोनों..... इक  साथ... सबको
            इतने प्यारे लगेंगे !

            सोचो तो

            देखकर हमें
            कोई संजीदा सी लड़की
            नज़रों की ख़ालिस सियाही से
            गुलाबी सी इक नज़्म लिख देगी
            हमारे आसमां पर.....

            और माँएं....... आदतन

            अपनी उंगली के पोरों पर
            आँखों से काजल निकालकर
            हमें नज़र का..... काला टीका लगा देंगी !

            सोचो तो.....तुम और मैं

            चाँद के दो टुकड़ों जैसे !
            मोहब्बत मुकम्मल होगी तब
            जब 'एक' होंगे हम दोनों
            पूरी मैं................पूरे तुम !
            ......................................................
            ......................................................
            'एक' तो हैं ही ...हम दोनों ...पहले से
            बस मोहब्बत के नूर की बात है .....
            वक़्त गया है लाने.......खुदा के घर................
            फिर दिल के चिराग...... हमेशा के लिए...... जला लेंगे !
            .........................................................................................
            ~Saumya

            गुल--> Dimples 

            July 30, 2012

            इक पगली सी लड़की!













            वो प्यारी सी... पगली लड़की
            चहकती .....फुदकती 
            इस कमरे से उस कमरे 
            आईने में तकती खुद को 
            दिन में ....कुछ सौ दफे !
            (ग़लतफ़हमी तो न हुई आपको?)
            दरअसल  उसे 
            अपनी पलकों के गिरने का 
            इंतज़ार रहता है 
            'उसकी' पलकों के ख्वाब 
            सँवारने के लिए !

            कोई गुंजाइश कहीं ....बाकी रह ना जाए 
            लिहाज़ा...अब रोज़ का रिवाज़ है ...

            शाम जैसे ही चंदा ... उसकी छत पर 
            हौले से दस्तक देता है 
            वो एक नज़र... निहार कर उसे 
            मानो वो नहीं 'वो' हो )
            घर के मंदिर को दौड़ जाती है. 
            घी का इक दिया जलाकर 
            रोज़ की इबादत के बाद 
            मासूमियत के लिफ़ाफ़े में 
            अपनी बातों की मिठास भरकर 
            रब को.... चुपके से दे आती है ......
            'वो' खुश रहे .....इतनी सी मुराद लेकर !
            'उसकी' सालगिरह ,तीज-त्योहारों पर
            पण्डित -जी से... 'उसके' नाम का 
            इक रक्षा-सूत्र लेकर 
            अपनी डायरी के उस पन्ने पर
            सहेज कर रख देती है 
            जिसपे.... 'उसका' नाम लिखा है ! 
            लिफ़ाफ़े की साइज़ भी... उन दिनों ...तनिक बढ़ जाती है 
            दुगुनी सिफारिशों के साथ !


            पगली
            एक भी दुआ
            जाया नहीं करती
            अपने ऊपर ...
            बस चले तो 
            अपने हिस्से का आशीर्वाद भी
            'उसके' नाम लिख दे !
            यहाँ तलक सोच रखा है 
            कि जो तारा बन गयी पहले अगर 
            तो 'उसकी' खिड़की पर जाकर.....
            फिर से टूट जायेगी ........................

            कुछ और हो ना हो
            दुआओं को तो हक़ है ना कि
            किसी के लिए भी.... मांग ली जाएं
            बिना कोई हिसाब लगाए !

            इससे पाक तरीका है क्या कोई और 
            वो कुछ ...एकतरफ़ा निभाने का?
            (मुस्कुराते हुए ....बिना कुछ खोए ?)

            फिर से.... ग़लतफ़हमी तो ना हुई आपको ?
            वो खुश है .........और 'वो'......... बेखबर !
            .......................................................................

            एक शेर भी अर्ज़ है (मान लीजिये 'उसकी' कलम से )

            "यूंही तो नहीं मुस्कुराते रहते हम बेवजह हर रोज़ 
            किसी की दुआओं का .....असर मालूम देता है । "

            ~Saumya

            July 25, 2012

            आओ थोड़ा खुदा हो जाएँ























            आओ थोड़ा खुदा हो जाएँ
            मिलकर अलग सी बारिश बनाएं 
            मन के बादलों से 
            प्यार-मुहब्बत के मोती छलकाएं 
            तिनका-तिनका खूब भिगायें 
            उम्मीद का सूरज उगाकर 
            ढेर सारे इन्द्रधनुष सजाएं 
            आओ थोड़ा खुदा हो जाएँ ।

            तकदीर की लकीरें बनाएं 
            उस बस्ती में जहाँ बच्चे 
            काम पर जाते हैं 
            उनके हाथों में कलम पकड़ाएँ 
            आँखों में सपने बुनकर 
            कंचों से ज़ेबें भरकर  
            कागज़ की कश्ती के केवट बन जाएं 
            आओ थोड़ा खुदा हो जाएँ ।

            चलो हम-तुम सन्ता-क्लॉस बन जाएं 
            गली-मोहल्ले में अपने-अपने
            खुशियों के पैकिट बाँट आयें 
            हारे को हौसला दिला दें 
            रोती अँखियों को हँसा दें
            दरकते बाजुओं को गले लगायें 
            गुलशन-ए-ज़िन्दगी सींच आयें 
            आओ थोड़ा खुदा हो जाएँ । 

            नेकी हो मज़हब बनायें 
            सच के लिए हम लड़ जाएँ
            देर कितनी भी हो जाए
            अँधेरा मगर होने ना पाए
            मोमबत्तियां कब तक जलेंगी
            रूह में अपनी रौशनी लायें
            आओ थोड़ा खुदा हो जाएँ । 

            कण-कण में जैसे वो बसा है
            हर दिल में हम भी घर जाएँ
            'एक' जैसे वो खड़ा है
            'एक' हम भी हो जाएँ
            ज़मीं आसमां का फ़र्क छोडें 
            जहाँ जाएँ जन्नत बनाएं
            आओ थोड़ा खुदा हो जाएँ ।  
            ...........................................

            थोड़े तुम शिवा हो जाओ
            थोड़े हम दुर्गा हो जाएँ
            आओ थोड़ा खुदा हो जाएँ ।

            ~Saumya

            July 19, 2012

            और मिल गयी मैं मुझको !















            पता नहीं कब कहाँ मैं
            मुझसे बिछड़ गयी हूँ
            नहीं...किसी भीड़ में नहीं थी
            फिर भी खो गयी हूँ !

            पहले ढूँढा खुद को मैंने

            उस तारीफों से भरे संदूक में
            जो प्यार से कभी मिली थीं मुझे ....
            बोहत संभालकर रखी थी मैंने 
            सारी की सारी ....यादों के लॉकर में 
            कुछ झूठी थीं...कुछ सच्ची थीं
            छोटी-छोटी ही सही... पर अच्छी थीं
            मीठी -मीठी उन सौगातों में 
            सोचा शायद थोड़ी सी मिल जाऊं खुद को 
            ठीक से ढूँढा मैंने...
            पर नहीं मिली मैं मुझको..................

            फिर सोचा खोजूं खुद को

            कविताओं में...नज्मों में
            जो टांक दी थी मैंने....कागज़ के सीने में  ....
            शायद किसी शब्दों की इमारत तले
            जान बूझकर....... दब गयी हूँ ?
            या फिर भूल आई  हूँ खुद को
            गलती से ......किसी अधूरी ग़ज़ल में ?
            या शायद बाँध दिया हो रूह को अपनी 
            किसी रूपक में .....बेवजह ही ...बावली हूँ ना !
            बोहत  ढूँढा मैंने खुद को 
            लफ्ज़ दर लफ्ज़ ...खंगोल डाला 
            ज़ज्बातों के समुंदर को 
            पर नहीं मिली मैं मुझको............ 

            मेरी परछाईं भी तो लापता थी 

            रपट दर्ज थी उसकी भी दिल-ओ-दिमाग में 
            वर्ना उसी से पूछ लेती .....
            फिर ख्याल आया 
            किसी की आँखों में ढूँढूं 
            शायद वहीँ महफूज़ होंगी 
            पर उतनी पास..... कोई कहाँ था 
            परेशां होकर ......दौड़कर फिर गयी 
            आईने के पास....सोचा
            वहां तो ज़रूर पाउंगी खुद को
            पर ये क्या …आईना भी खाली था ……
            मेरे भीतर की तरह ...इकदम खोखला .... 
            और फिर नहीं मिली मैं मुझको ......... 

            कबसे....  ढूंढ रही हूँ खुद को

            हाथ की हथेलियों में 
            ज़िन्दगी की पहेलियों में  
            बीते हुए कल के अंधेरों में  
            आने वाले कल के कोहरों में  
            सब से तो पूछ लिया 
            सब जगह तो देख लिया …. 
            नहीं मिल रही ……मैं मुझको ………… 

            किसी ने बताया था मुझे … 

            मेरा पुराना पता ……
            इक छोटे से सपने के
            बड़े से घरौंदे में रहती थी मैं 
            ख़ुशी -ख़ुशी …….तितलियों जैसी .. 
            अब वहां कोई दूसरा किरायेदार रहता है …. 

            घर लौटी जब थक हारकर 

            रोई खूब मैं फूंट-फूंट कर …
            बोहत देर बाद ....अचानक किसी ने आकर
            (खुदा ही होगा ) 
            आँखों पर कोई इक चश्मा पहनाया 
            पलकों पर जमी ....धूल हटाया
            और दिखाया …………. 
            कि किसी कोने में जब 
            बिखरी-बिखरी सी पड़ी थी मैं 
            तो माँ-पापा ने कैसे 
            टुकड़े -टुकड़े तिनका -तिनका जोड़कर मुझे
            अपनी दुआओं में .......सहेज कर......... रख लिया था ..... 

            पापा के अक्स की छाँव तले 

            माँ के आँचल में लिपटी 
            कितने सुकून से तो थी मैं
            दुनिया की सबसे सलामत जगह पर ...
            ना आँखों में डर था,ना दिल में बेचैनी  
            लगा की कहीं खोयी ही नहीं थी मैं कभी
            हमेशा से...... वहीँ तो थी..... 
            माँ-पापा की दुआओं में............महफूज़! 

            ~Saumya

            July 06, 2012

            Few illustrations....on living!


            -     - Rohan has always inherited his elder brother’s books, clothes, and even toys. Seldom is it that he gets a new one owing to the financial crisis in the family. But never has he lodged a complaint. In fact, he welcomes every ‘change’ with a broadened smile and (seemingly) enthused attitude.

            -    -Yesterday was Mr. and Mrs. Mathur’s 25th wedding anniversary. To no doubts, there wasn’t any celebration except that the couple went to a temple and Aarti prepared ‘Matar-Paneer’ for dinner. It’s their eldest (of the three) daughter’s marriage in a month. Lots of work pending. Mr. Mathur’s eyes gleam with an echoing contentment as he espies the white, shiny, newly purchased i20 in his verandah (the only four-wheeler). Yes, the one he is gifting to his daughter. He (with his family) had let go umpteenth small little pleasures, everybody knows, for the big day. 

            -     - Radhika started tailoring in her house a year ago. Now she gets enough orders that can suitably finance food for her family, books for her two children, clothes twice a year and maybe a little more sometimes. Her husband was a security guard in some agency. But after a rigorous accident, he couldn’t stand on both legs and was obviously thrown out of the job. Though he tried various other options but nothing really worked. Frustrated, he cursed his disability destiny. It was then that Radhika took the responsibility. And she is doing pretty well today. Shyam,................. her husband, does the household chores. Though Radhika insisted she’ll manage but he never allows her except to do the dishes. Laxmi helps her father in the kitchen when she is done with her homework and daily studies. Shyam also does all the outside work. He often goes to the market to get grocery and stuff….stationary and toffees for the kids and not to forget…………colorful threads ………… and beautiful bindis ………………..for his wife.

            -     - Simran has just typed her resignation letter. Her husband works in a reputed MNC in Bangalore and has a handsome package. Simran also worked in a software company in Pune. Nah, not for riches but she was ambitious like many others and wanted to make it big. Recently she has been blessed with twins. There’s no one in the relations except her father-in-law. ‘Family comes first’, she understands. ‘Maybe some other time’.

            -     - Aayesha had to settle for a mediocre college, though she knows she deserved better; Paras couldn’t get into his dream company; Reehan lost in the battle of love…..but today ……………………they all have "moved on" in life! ………….”It just ain't possible to explain some things.  It's interesting to wonder on them and do some speculation, but the main thing is you have to accept it--take it for what it is and get on with your growing.”(Jim Dodge)

            Life is less about Stars,Butterflies and Rainbows … and more about Compromises, Adjustments and Acceptance!


            PS:Illustrations are all real.However names are randomly chosen.

            June 13, 2012

            आँखों से थोड़ी बारिश हो..














            सूखे हुए बेजान ख्वाब सारे
            दफन हैं रूह की..... कमज़ोर बुनियाद पर 
            ......................................................
            आँखों से थोड़ी बारिश  हो
            तो दिल को यकीं आये
            कि पल्कों की डाली पर
            इक नया ख्वाब 
            फिर 'हरा' होगा कभी.....................

            ~Saumya

            June 10, 2012

            ये ज़िन्दगी क्यूँ .…फिर भी अच्छी लगती है ?




            बात  बात  पर  देखो  ना …हर  पल   झगड़ती  है 
            ये  ज़िन्दगी  क्यूँ .....…फिर  भी  अच्छी  लगती  है ?

            कभी  बिना  गुनाह  किये  ही ..............…सज़ा  सुनाती  है 
              मासूम  किसी  गुड़िया को .......... बेवजह  रुलाती  है 
            हर  साँस में  रूह ….......... कितनी  बार  बिलखती  है 
            ये  ज़िन्दगी  क्यूँ  ........…फिर  भी  अच्छी  लगती  है ?

            कभी  सपने  दिखाकर …............सपने  तोड़  देती  है 
              हवाओं  का  रुख   ही............  उल्टा  मोड़  देती  है 
            उठ  कर  गिरना .…कभी  गिर  कर  उठना….लुढ़कती -संभलती है 
            ये  ज़िन्दगी  क्यूँ  ……………..फिर  भी  अच्छी  लगती  है ?

            जिसे  शिद्दत  से  चाहो ….........…वो  कहाँ  बक्श्ती है 
            जो  दुआओं  में  मांगो  .........…वो  कहाँ  सुनती  है 
            दिल  की  प्यारी  बातों को ......…ये  कहाँ  समझती  है 
            ये  ज़िन्दगी  क्यूँ ……………. फिर  भी  अच्छी  लगती  है ?

            हँसाती  है.......रुलाती  है......बनाती  है.......मिटाती  है
            सिखाती  है.........दुलराती  है.......गिराती  है.........भगाती  है
            हाथ  की  रेखाओं  पर  बस..............चलती  जाती  है.....

            इस  कोने  कभी.........कभी  उस  कोने  सिसकती  है 
            ये  ज़िन्दगी  क्यूँ...............फिर  भी  अच्छी  लगती  है? 

            ~Saumya

            February 28, 2012

            February 10, 2012

            108 Things I'll remember about MNNIT :D


            1. First day @College: Excitement at its peak
            2. The whole campus: GS,GW,FN,SEW,LH,NLH including all the halls, roof tops, terrace and stairs; well actually the gala time we had there!
            3. Swagat 2K8 : Independence day!
            4. Flying aeroplanes in class infront of the teacher: Hilarious 1st year memory
            5. Get-togethers with seniors
            6. Teeping/Taaping EG sheets
            7. Successful massbunks in front of the teacher :P
            8. Unsuccessful massbunks due to some attendance-addicted creatures (no offence)
            9. Massbunk coordinators and the zaddozehad they had to do :P
            10. Talking/Passing chits comfortably in class that too by being on 1st/2nd bench
            11. Laughing on a matka’s gestures on his face and he asking “Aap log mere upar hans kyun rahe hain” :P
            12. Your name wrongly pronounced by the teacher. Hell irritating man!!
            13. The moment when a teacher’s mobile rings which has some Akshay-kumar/Govinda type of ringtone
            14. Entering 10-25 minutes late into the class and still getting an entry :P. What a pride feeling, no?
            15. Giving names to professors/batch mates; the list is way too large!
            16. The moment when teacher says “Ye mujhe bhi nahi aata” :P
            17. Sleeping in class with eyes wide open :Yawnnnn
            18. Nodding to the teacher as if you’re really getting what’s actually going on: We’’re just too good at it!
            19. When a teacher cracks a PJ and nobody laughs
            20. Getting a secret pleasure when a teacher walks out of the class - after blasting the whole class on discipline
            21. Getting branded as "the most indisciplined and naa padhne waali branch" by the entire faculty
            22. Copying Practical file/Assignments just few minutes before the deadline
            23. Enjoying the window-view when other members of your group are busy doing the practical :D
            24. Manipulating the readings of an experiment to get the proper graph :P. Seldom did our “sircute”(read ‘circuit’) worked.
            25. Vacants :blessings
            26. Classes being cancelled :blessing in disguise
            27. Cursing the guy who asks doubts
            28. Last five minutes of a ridiculously boring lecture
            29. Cursing the professor who continues teaching after the allotted time
            30. Rushing to the water cooler after every lecture
            31. Getting an SGPA of 9 when you are actually expecting 7 :) or vice versa :X
            32. That ‘rich historical text’ engraved on benches/tables
            33. Scribbling in your notes copy everything apart from what is being taught; from cartoons to poems
            34. Photo-state shops during exam time (Engineering would not have been this easy without a Xerox machine :P)
            35. Getting through a subject while not attending even its single class :P. You’ll be surprised to know that there were others who attended the class but couldn’t get through. *evil grin *
            36. Making new theories in viva-voce and then being addressed with ‘honorable titles’ by our more-so-honorable professors :P
            37. Cheating in exams-both karna and karana :P
            38. Eating Chocolates/Polo/Centrefresh in class and dividing it into as many parts as the no. of chatore’s around
            39. Participating in tech-fest and losing all :P
            40. Participating in cultural-fest and winning some :D
            41. Coordinating an event
            42. Tapra-Bun Makhhan and kulhad mein adrak waali chai
            43. Having jalebis @9 AM
            44. GPL’s-kabhi bhi kahin bhi
            45. “Happy Birthday’s”-Birthday wishes+Scrapbooks+Greeting Cards+Cake+Gifts
            46. Treats-be it sumptuous dinner at restaurants or ‘ungli chaatne wala khana’ at dhabas
            47. Trips especially the ‘travelling’ part
            48. Bunking the class and outing with friends
            49. College canteen: Be it Nescii ki coffee or Bikaner ki Crispy!
            50. Antakshari in College Bus that too at top of the voice
            51. Small little leisurely strolls-in or outside the campus
            52. Aiwayi road trips
            53. Girly Gossips :D :P
            54. Tripling on scooty/Bike: The 3 Idiots
            55. Power-cuts during exams :P :P
            56. Photographs and photo sessions :D
            57. Small-little fights and then the roothna-manana process
            58. Group studies and suddenly diverting to a more interesting topic
            59. Nite-outs
            60. Facebook-ing: the innumerable groups you have to join,’status’ updates, and the weird stuff being shared
            61. Culrav 2k12: Enticing is the word!
            62. CDC:Kyunki accha lagta hai :)
            63. Eating magi from a plate shared by six other girls
            64. Getting shocked when you have attendance shortage and it’s on public domain and you’re the only girl in the list
            65. Power-cuts in labs especially when the circuit wasn’t working
            66. Talking to your single girl pals about the dearth of "accha ladka log" in campus vicinity :P :P
            67. Teasing non-single souls about their better halves.
            68. Teasing friends for their crushes and calling their names aloud when they are passing by :D
            69. Teasing friends in the name of guys whom they hate the most :P
            70. Getting awesome compliments from random people :P :D
            71. Mimic-ing all the teachers - the good and the bad
            72. The day CTs/Endsems get over
            73. Texting in class
            74. Listening to the ‘interesting’ conversation of the bench behind or the bench infront
            75. Roommates/Blockmates/Wingmates and the perfect bond we share :D
            76. Hostel mess: the kharaab khana, the accha khana and the 'espaesal' khana plus the crowd at the hostel canteen
            77. Hostel courtyard: a place to eat, sing, dance, study, play, walk and talk
            78. Sharing things be it T-shirts, Shoes or Study material
            79. Exclusive celebrations in hostel be it lohri,holi or diwali
            80. Sayonara: the extensive preparations followed by unlimited masti
            81. Playing cards late night in hostel
            82. Practice sessions during culturals
            83. Those movies/serials we saw together
            84. Our special slogans: yai hai,yai h; sab lite hai ;Aaooo Aaooo; gangu bai, Ek do teen chaar-band karo ye atyaachar :P…… etc & etc
            85. Those totally baseless stupidest conversations/adventures with friends : kyunki pagalpanti bhi zaroori hai :) followed by incredible pet-mein-dard-karane -waale-aankhon -se-aansoo-nikalne-waale laughter sessions
            86. Basky Court: dhoop mein basketball khelne ka bhi apna maza hota hai  :)
            87. Exhaustive shopping cum window shopping :P :P
            88. Day dreaming/Planning about our obscure future
            89. Hooting :anywhere, everywhere :P
            90. Project Presentation mein apni ‘udwana’ no matter you worked for 2 hours or 2 months: ghor beizatti :P
            91. The one and only Protest we witnessed followed by sleeping on road with thousand others :P
            92. Making spunky videos of professors teaching in class :P
            93. Clicking in class :)
            94. Branch T-shirts: Awesomeness :D
            95. MP hall ki raunak during fests
            96. Playing songs on loudspeaker and then dancing like mads :D
            97. Excitement-filled hours long Packing for home :D
            98. The day results are out and ‘Next semester mein bhi nahi padhenge ‘ attitude
            99. That entirely new vocab we learnt here :P
            100. Those times when you fell ill and were overwhelmingly taken care off
            101. Wo log jo dasste hain :P
            102. Voice modulations in class: azeebogareeb aawaaz nikalna and taali bajana thing :D
            103. TPO: much thanks!
            104. Bucket Party after placement :D
            105. The company you are placed in: First job is indeed special!
            106. That moment when your besties got the job
            107. Souvenir: getting/giving nicknames was way too funny.
                      And last but undoubtedly the greatest:

             108.  The best-est buddies(read 'FRIENDS for LIFETIME') we earned here with whom we have lived all above and much much much more :)


            PS 1:Rukhsat 2k12-in waiting :)
            PS 2:There are umpteenth other moments.Everything cannot be shared. :P
            PS 3:Thank you PM and SB for helping me with this list :)
            PS 4: Do leave your comments :)